“वक़्त” – विक्की आर्य की कविता

 

“वक़्त”
अब सपने ही मेरे
टूट गये ।।
सब अपने ही मेरे
छुट गये ।।
कोन समझा पायेगा
इश्क़ की आदत
उनको ।।
वो समझ गये ।
की हम टूट गये।।
अब सब सपने
ही मेरे टूट गये।।
अब सब अपने
ही मेरे टूट गये।।
विक्की आर्य

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