विश्व कविता दिवस के अवसर पर पढ़ें डॉ. पूरन जोशी जी की स्वरचित कविताएं

विश्व कविता दिवस की शुभकामनायें! 

1. सभ्यता 

हे सिंधु! 

तुम ही थी जिसके किनारे 

मेरे पूर्वजों ने

संस्कृति के प्रथम पाठ पढ़े

तुम्हारे शीतल जल ने

उनको प्राण दिये

किसी ने तुमको इंडस कहा 

तो हम इंडियन हो गये

जबकि तुम तो सिर्फ

पोषण कर रही थी

मैं देख पा रहा हूँ 

मेरी किसी पर- परनानी 

की पर – परनानी को

तुम्हारे तीर पर नहाते हुए 

सामने बैठा है एक बच्चा 

और एक कुत्ता 

वही कुत्ता जो द्रौपदी की 

अंतिम यात्रा में 

उसका साथी बना!

 

2. जो गया 

लौटना लफ्ज़ कितना अपना लगता है

लेकिन सब कहाँ लौट पाते हैं! 

लौटा लाना उसे जो आ नहीं सका

कह के कि लौटूंगा मैं

दिन के ढलने के बाद 

शाम से पहले

सूरज की आखिरी किरन के साथ

गोधूलि की धूल में नहा के

सब कल्पना है लेकिन सुंदर है

लौटा लाना उसे!

 

3. ठिकाना 

चरवाहे खुश हैं कि लौट रहे हैं 

अपने घरों को लम्बे शीत प्रवास के बाद

भेड़े खुश हैं कि मिलेगी मुलायम बुग्याली घास

हे प्रकृति माँ!

सबको घर और घास मिलती रहे 

इस दुनिया में!

 

4. ख़बर 

मैंने कब चाहा 

एक जगह पर बंधे रहना 

मैंने तो चाहा 

खानाबदोश के रूप में

पशुओं को लेकर 

दुनिया के एक छोर से 

दूसरे छोर तक यायावरी करना 

जहाँ साँझ का तारा डूबते सूरज के 

पैरों के साथ चलकर आये और 

जानवरों के गले में बंधी घण्टी बोले 

कहो कैसा रहा तुम्हारा दिन?

5. फिकर 

कविता की नदी के किनारे 

बैठे हैं हम 

मुक्ति की आस लिए

नदी के किनारे पर 

पानी में पैर डाले, 

पहले ये मन कविता के पानी 

से भीगता है

मन गीला हुआ तो 

ये आँखें नम हो जाती हैं! 

इस तरह से 

मन और आँखों का भीगना 

दुनिया को बचा लेगा 

किसी रोज़ 

भयंकर सूखे और 

अकाल के दुष्चक्र से! 

 

 6. हिदायत 

काले और सफ़ेद में ही 

देखने की आदी 

दुनिया की आँखें

जो अलग को बर्दाश्त

नहीं करती हैं 

कविता देगी उनको 

ग्रे की समझ भी

एक रोज़ कविताओं के 

पंख निकल आयेंगे 

और वे कागज़ से उड़ कर 

चढ़ जायेंगी तानाशाहों के 

कन्धों पर 

उनके कानों में कहेंगी

काले और सफ़ेद के बीच

ग्रे की कथा!

           पूरन जोशी