चित्रकला विभाग सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार और 3 दिवसीय राष्ट्रीय कला प्रर्दशनी का हुआ समापन

दृश्यकला संकाय एवं चित्रकला विभाग सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा मे चल रहे दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार के दूसरे दिन कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वन्दना और स्वागत संबोधन तथा स्वागत गान के साथ हुआ आज के मुख्य वक्ता के प्रो. डी एस पोखरिया (पूर्व परिसर निदेशक सो. सि. जी परिसर) ने ‘लोकोत्सव और कला’ बारे मे तथा उत्तराखण्ड के आम जनमानस के मध्य प्रचालित लोक पर्वो के बारे मे बताया कि एक सप्ताह तक चलने वाले स्थानीय त्योहार ही लोक पर्व कहे जाते है। उनके मध्य आकार ग्रहण करते है लोककला के विविध रूप लोक में प्रचलित सभी धार्मिक क्रिया-कलाप जैसे वृक्ष में जल अर्पित करना, सूर्य को जल देना आदि सभी मे प्रकृति का पोषण निहित है।

आज के दिन के पूर्ण कार्यक्रम की रूपरेखा कार्यक्रम संयोजिका प्रो. सोनू द्विवेदी ‘शिवानी’ (संकायाध्यक्ष दृश्य कला एवं विभागाध्यक्ष चित्रकला) ने रखी और पर्यावरण के साथ कला के अन्त: सम्बन्धों को बारीकी से विवेचित किया।

विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रो. पुष्पा अवस्थी (संकायाध्यक्ष कला संकाय) ने ‘भारतीय वाङमय में पर्यावरण’ के संरक्षण और महत्व से संबंधित बिन्दुओं को विवेचित किया आपने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण का एक अटूट संबंध है मानव की प्रत्येक श्वास और प्रश्वास प्रकृति के संतुलन पर ही निर्भर है भारतीय वाङ़ग्मय में आदिकाल से प्रकृति को दैवीय जीवनदायी मानकर उसे पूजित और पोषित करने के अनेकों विधान, धर्म, आस्था से युक्त लोकपर्वो में समाहित कर बनाये गये आज आवश्यकता है पुनः उससे जुड़ने की और उसे धारण करने की। 

अतिथि वक्ता के रूप में डा. मंजू सिंह (विभागाध्यक्ष चित्रकला विभाग बरेली कालेज बरेली) ने ‘पर्यावरण और कला’ विषय पर अपना वक्तव्य रखा आपने कहा कि पर्यावरण का नित्य प्रति बदलता स्वरूप कला के नये रूपों का सृजन करता है सुखी प्रकृति के मध्य ही कलात्मक प्रतिभा का विकास हो सकता है आज के परिवेश में व्याप्त महामारी, मानसिक कुंठा आदि पर्यावरण के क्षरण का ही दुषप्रभाव है जहाँ कला प्रसन्न भाव से युक्त नही हो सकती। 

प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. प्रेमचन्द्र विश्वकर्मा (विभागाध्यक्ष ललित कला विभाग म.ग.का. विद्यापीठ) ने की और कहा की आज के परिवेश मे इस तरह के राष्ट्रीय परिचर्चा की बेहद आवश्यकता है जिससे युवावर्ग जागरूक बन सके।

द्वितीय सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. आराधना शुक्ला (पूर्व संकायाध्यक्ष कला संकाय) ने ‘कला,मनोविज्ञान और सौन्दर्य’ के महत्व को समझाया उन्होंने कहा कि कला में भाव का बड़ा महत्व है भाव मानव के मन तक जाता है भाव के साथ चित्र में कही गयी बात आनन्द के साथ व्यक्ति के मन पर दीर्घस्थायी प्रभाव डालती है।

अतिथि वक्ता के रूप में डा चन्द्र सिंह चौहान (क्षेत्रीय प्रभारी पुरातत्व विभाग ईकाई अल्मोड़ा) ने ‘उत्तराखंड के प्रमुख लोकपर्व हरेला – कला एवं पर्यावरण’ पर पेपर प्रस्तुत किया।

विषयगत वक्तव्य प्रो. वी.डी. एस नेगी (विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग) ने ‘लोकपर्वो में संस्कृति और कला का स्वरूप’ विवेचित किया आपने कहा कि लोक शब्द बहुत ही व्यापक है जिसमें जीवन के सभी रूप समाहित है पर्यावरण का संरक्षण और पोषण लोकपर्वो की प्राथमिकता रही है इसी से लोकपर्व भारतीय जनजीवन का प्रमुख अंग बने हरेला उत्तराखण्ड के पर्यावरण की रक्षा, सुरक्षा एवं मानव जीवन में प्रकृति के महत्व को स्थापित करने वाला पर्व है वर्तमान में प्रकृति के प्रति बढ़ती उदासीनता से ‘हरेला’ पर्व को जानने और समझने का महत्व और अधिक हो जाता है। आज संरक्षक के रूप मे प्रो. शेखर चन्द्र जोशी दोनों ही सत्रों में उपस्थित रहे।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डाॅ संजीव आर्य वरिष्ठ प्रवक्ता चित्रकला विभाग ने की और हरेला पर्व के वैज्ञानिक महत्व पर चर्चा की इसके पश्चात प्रश्न मंच के माध्यम से कार्यक्रम संयोजक प्रो. सोनू द्विवेदी ‘शिवानी’ सहित विषय विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों के जिज्ञासापूर्ण प्रश्नों का उत्तर दिया। प्रो. द्विवेदी ने माननीय कुलपति सो.सि.जी.वि.वि. के प्रति आभार प्रकट किया और कहा कि नि:संदेह माननीय कुलपति जी के मार्गदर्शन एवं संरक्षण में हरेला महोत्सव के अन्तर्गत होने वाली दो दिवसीय परिचर्चा एवं तीन दिवसीय राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी अपने विषयानुरूप विचारों के चहुमुखी मंथन में सफल रही है पिछले दो दिनों से चल रहे इस परिचर्चा में पर्यावरण के संरक्षण में लोकपर्वो के आस्थापरक, धर्मपरक महत्व के साथ-साथ उसके वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक स्वरूप को आज के इस महाआपदा के परिप्रेक्ष्य मे समझने में सहायता मिली है सभी वरिष्ठ विद्वान वक्ताओं ने अपने-अपने ढंग से इस विषय को विवेचित किया और प्रतिभागियों के प्रश्नों का उत्तर भी दिया। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आने वाले समय में भी दृश्यकला संकाय और चित्रकला विभाग द्वारा छात्र/छात्राओं में वैचारिक एवं कलात्मक प्रतिभा विकास हेतु इस तरह के राष्ट्रीय परिचर्चा और प्रदर्शनी का आयोजन होगा। 

इस अवसर पर देश में विभिन्न स्थानों के प्रतिभागी उपस्थित रहे डॉ. बिंदु अवस्थी आगरा से डॉ. वेदप्रकाश हाथरस दिल्ली से भास्कर पांडे दिल्ली, रेखा कक्कड़, आगरा से डॉ. प्रीति अग्रवाल देहरादून, डॉ. एकता बिष्ट गढ़वाल, पंकज जायसवाल कुशीनगर गोरखपुर, पवन यादव वाराणसी, लक्ष्य शाह कुरूक्षेत्र हरियाणा, उत्तम सरदार ऊधमसिंह नगर, हिमांशु आर्या आदि जुड़े रहे। 

अंत मे राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का डिजिटल कैटलॉग प्रदर्शित किया गया। अतिथि व्याख्याता कौशल कुमार, चंदन आर्या एवं रमेश मौर्य ने संयुक्त रुप से धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। 

तकनीकी सहयोगी सन्तोष सिंह मेर, रविशंकर, विनीत बिष्ट, पूरन मेहता और जीवन चंद्र जोशी रहे। बी.एफ.ए. तथा एम.एफ.ए. सहित विभाग के सभी शोधछात्र छात्राएं इस परिचर्चा और प्रदर्शनी से जुड़े रहे।