सोच संस्था के स्थापना दिवस पर दीपांशु गुरुरानी की द्वारा लिखी गई स्वरचित कविता, विषय – एक सोच

एक सोच 

जो कभी किसी ने सोचा तक ना था, 

कि एक दिन हम इस बात को भी इतना खुल के 

मंच से बोल पाएंगे .. 

 

एक सोच, 

जो समाज की कुरीतियों, रूढ़िवादियो को, 

ख़तम करने के लिए बढ़ते कदम हैं .. 

 

एक सोच, 

जिसे बोलने में खुद महिलाओं को झिझक होती थी, 

उसे एक लड़का और एक संस्था ना केवल बोल रहा है, 

बल्कि सोच के माध्यम से जागरूक भी कर रहा है ..

 

एक सोच, 

जहाँ पर गन्दे कपड़े को फ़ेंक कर, 

अब सेनट्री पेड्स को अपनाने की 

बात पर बल दिया जा रहा है ..

 

एक सोच, 

जो यह बताती है कि, 

मासिक धर्म बीमारी या अभिशाप नहीं, 

बल्कि एक सामान्य प्रक्रिया है ..

 

एक सोच, 

जो ना केवल एक संस्था है, 

बल्कि एक ऐसा परिवार है, 

जिसमें सदस्यों की संख्या 

दिनों दिन बढ़ती ही जाती है ..

 

एक सोच, 

जिसने मेरी, आपकी,

पूरे समाज की सोच को 

बदलने का काम किया है ..

 

एक सोच, 

जो सिर्फ किसी सोच की नहीं, 

एक संस्था की ही नहीं, 

आप सबकी सोच है..

एक सोच, मेरी सोच, 

आपकी सोच, 

हम सब की सोच….

– दीपांशु गुरूरानी। ©